बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर महिलाओं के समान अधिकारों को देखते हुए विश्वभर में मनाया जा रहा हैै। इसे मनाने का उद्देश्य महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना है लेकिन आज भी महिलाओं को अधिकार नहीं मिले हैं । महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले समाज में लगातार बढ़ रहे हैं ।
यह विचार रोहतक राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बी एल एस तकनीकी एवं प्रबंधन संस्थान में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आयोजित सेमिनार में वक्ताओं ने व्यक्त किये | कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के छायाचित्र पर दीपांजलि व सरस्वती वंदना से हुआ। मुख्य अतिथि आशा किरण स्कूल की संचालिका और समाजसेवी कुसुमलता कौशिक ने अपने संबोधन में कहा हमारे समाज में महिलाओं को अबला कहा जाता था | इतिहास गवाह है कि महिलाएं कभी कमजोर नहीं रही है चाहे सती सावित्री हो या फिर रानी लक्ष्मीबाई। महिला शक्ति हमारे राष्ट्र की शक्ति है। उन्होंने कहा समाज में बेटा बेटी एक समान हैं। बेटियां भी बेटों की तरह समाज में मां-बाप का नाम रोशन हर जगह कर रही हैं। विशिष्ट अतिथि सम्पूर्ण एकता मिशन फॉउंडेशन महिला मोर्चा की अध्यक्ष नीलम गौतम ने कहा हम आधुनिकता की बड़ी बड़ी बात तो करते हैं लेकिन विचारों और मानसिकता से अभी तक पुरातन सोच के बने हुए हैं इसी के चलते समाज की मानसिकता में बदलाव नहीं आ पा रहे हैं | आज सभी को भी महिलाओं के प्रति अपनी सोच को बदलने की जरूरत है | नीलम ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा महिलाओं को अपनी लड़ाई खुद से लड़ने की जरूरत है |
संस्थान के निदेशक डॉ नरेन्दर शर्मा ने इस मौके पर कहा समता मूलक समाज की कल्पना तभी की जा सकती है जब महिला और पुरुष कंधे से कन्धा मिलाकर आगे चलेंगी | डॉ शर्मा ने कहा संकीर्ण मानसिकता प्रचलित रीति-रिवाजों और सामाजिक व्यवस्था के कारण भी बेटा और बेटी के प्रति लोगों की सोच विकृत हुई है जिसे आज बदलने की जरूरत है | उन्होंने समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया ।
डॉ रजनी राठी ने इस मौके पर कहा पुरातन काल तक देश में महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त थे, परंतु कालांतर में स्थिति बिगड़ने लगी। उन्होंने कहा कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर समुचित भागीदारी के बिना महिला सशक्तीकरण का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। पत्रकारिता विंभाग के समन्वयक हर्षवर्धन पाण्डे ने अपनी बात रखते हुए कहा महिलाओं के प्रति पुरुषों की मानसिकता में बदलाव नहीं आया है । आज भी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सहारा करना पड़ रहा है । महिलाओं को संसद में आरक्षण देने की मांग 90 के दशक से उठ रही है लेकिन महिलाओं को संसद में कोई भी पार्टी टिकट नहीं देना चाहती । उन्होंने कहा महिलाओं को अपनी लड़ाई खुद से लड़ने की जरूरत है ।
लॉ विभाग की छात्रा अंजलि वशिष्ठ ने कहा कन्या भ्रूण हत्या का बढ़ता ग्राफ चिंता का कारण बना है | पूरे विश्व में दस से पन्द्रह करोड़ कन्या भ्रूण हत्याएं प्रति वर्ष होती हैं जिनमे अकेले भारत में ही हर साल तीन करोड़ कन्या भ्रूण हत्या होती है | उज्मा परवीन ने इस मौके पर कहा समाज में ज्यादातर मां-बाप सोचते हैं कि बेटा तो जीवन भर उनके साथ रहेगा और बुढ़ापे में उनकी लाठी बनेगा। समाज में वंश परंपरा का पोषक लड़कों को ही माना जाता है। बहू जब बेटा जनम देती है, तब सास की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है लेकिन बेटी के पैदा होने के समाचार सुनकर वह अपना सर पकड़कर बैठ जाती है| आज ऐसी मानसिकता से भी बाहर निकलने की जरुरत है | रवि ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के नए कानूनों और विशाखा गाइडलाइंस के बारे में सभी को विस्तार से बताया | शीबा थॉमस ने कहा जिस देश में स्त्री के त्याग और ममता की दुहाई दी जाती हो, उसी देश में कन्या के पैदा होने पर पूरे परिवार में मायूसी और शोक छा जाना बहुत बड़ी विडंबना है। हमारे समाज के लोगों में पुत्र की बढ़ती लालसा कहीं न कहीं इस अपराध की सबसे बड़ी वजह है। महिला दिवस पर हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है | सतेन्दर ने कविता के माध्यम से महिला के दर्द को जहाँ बयां किया वहीँ शिक्षा विभाग की छात्राओं ने ग्रुप सांग प्रस्तुत कर समां बांधा | सभी ने देश के आधी आबादी के बेहतरी हेतु संवैधानिक संशोधन कर उन्हें व्यापक अधिकार देने की वकालत की। इस मौके पर समाजसेवी कुसुमलता को संस्थान के निदेशक डॉ नरेन्दर शर्मा ने उनके समाजसेवा के प्रति उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित भी किया | लॉ विभाग के समवयक डॉ संदीप लाल ने अंत में आभार व्यक्त किया |