बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जन्मदिवस पर देश भर में आयोजित कार्यक्रम की कड़ी में अटल मंडल की ओर से रखे गए कार्यक्रम में झज्जर जिला भाजपा की ओर से कार्यक्रम प्रभारी ओर मुख्य उद्धबोधनकर्ता के रूप में वरिष्ठ नेता दिनेश शेखवात उपस्थित रहे। सर्वप्रथम कार्यक्रम में दिनेश शेखावत के साथ सभी कार्यकर्ताओं ने उपाध्याय जी के चित्र पर माल्यर्पण किया और दीप प्रज्वलित करके उनको श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर दिनेश शेखावत ने अपने उध्बोधन में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता एवं एकात्म मानववाद के प्रणेता थे।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का जन्म 25 सितम्बर 1916 को मथुरा जिले के नगला चन्द्रभान ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे। रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे। दो वर्ष बाद दीनदयाल के भाई ने जन्म लिया, जिसका नाम शिवदयाल रखा गया। पिता भगवती प्रसाद ने बच्चों को ननिहाल भेज दिया। उस समय उपाध्याय जी के नाना चुन्नीलाल शुक्ल धानक्या, जयपुर, राजस्थान में स्टेशन मास्टर थे। नाना का परिवार बहुत बड़ा था। दीनदयाल अपने ममेरे भाइयों के साथ बड़े हुए। नाना का गाँव आगरा जिले में फतेहपुर सीकरी के पास ‘गुड़ की मँढई’ था। दीनदयाल अभी 3 वर्ष के भी नहीं हुये थे, कि उनके पिता का देहांत हो गया। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया। 8 अगस्त 1924 को उनका भी देहावसान हो गया। उस समय दीनदयाल जी 7 वर्ष के थे। 1926 में नाना चुन्नीलाल भी नहीं रहे। 1931 में पालन- पोषण करने वाली मामी का भी निधन हो गया था। 18 नवम्बर 1934 को अनुज शिवदयाल ने भी उपाध्याय जी का साथ सदा के लिए छोड़कर दुनिया से विदा ले ली। इसके एक साल बाद ही 1835 में स्नेहमयी नानी भी स्वर्ग सिधार गयीं। 19 वर्ष की अवस्था तक उपाध्याय जी ने मृत्यु-दर्शन से गहन साक्षात्कार कर लिया था। 8 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उपाध्याय जी ने श्रीकल्याण हाईस्कूल, सीकर, राजस्थान से दसवीं की परीक्षा में बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1937 में पिलानी से इंटरमीडिएट की परीक्षा में पुनः बोर्ड में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 1939 में कानपुर के सनातन धर्म कालेज से बी०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अंग्रेजी से एम०ए० करने के लिए सेंट जॉन्स कालेज, आगरा में प्रवेश लिया और पूर्वार्द्ध में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुये। अपनी बीमार बहन रामादेवी की शुश्रूषा में लगे रहने के कारण उत्तरार्द्ध न कर सके। इसी दौरान बहन की मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। मामाजी के बहुत आग्रह पर उन्होंने प्रशासनिक परीक्षा दी, उत्तीर्ण भी हुये किन्तु अंग्रेज सरकार की नौकरी नहीं की। 1941 में प्रयाग से बी०टी० की परीक्षा उत्तीर्ण की। बी०ए० और बी०टी० करने के बाद भी उन्होंने नौकरी नहीं की। 1937 में जब वह कानपुर से बी०ए० कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये। संघ के संस्थापक डॉ० हेडगेवार का सान्निध्य कानपुर में ही मिला। उपाध्याय जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गये। आजीवन संघ के प्रचारक रहे। संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आये। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। गुरु गोलवलकर जी की प्रेरणा इसमें निहित थी। 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ। उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने। इस अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से 7 उपाध्याय जी ने प्रस्तुत किये। डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर कहा- “यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूँ।” 1967 तक उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे। 1967 में कालीकट अधिवेशन में उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वह मात्र 43 दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 10/11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर अचानक उनकी हत्या कर दी गई। 11 फरवरी को प्रातः पौने चार बजे सहायक स्टेशन मास्टर को खंभा नं० 1276 के पास कंकड़ पर पड़ी हुई लाश की सूचना मिली। शव प्लेटफार्म पर रखा गया तो लोगों की भीड़ में से कोई व्यक्ति चिल्लाया- “अरे, यह तो भारतीय संघ के अध्यक्ष दीन दयाल उपाध्याय हैं।” पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गयी?
उपाध्याय जी एक चिन्तक और संगठनकर्ता थे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे।राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
एकात्म मानववाद (भारत)
पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा दी गई एक राजनैतिक विचारधारा है।
इस अवसर पर पूर्व जिलाध्यक्ष बिजेंद्र दलाल ने भी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इस दौरान राजपाल शर्मा, अटल मंडल अध्यक्ष मोहन लाल, जयभगवान, सोमबीर, विजय शेखावत, पंकज गर्ग, अरुण राणा, संदीप गुलिया, संदीप पाराशर,, संजय, अशोक, संजीव, ब्रह्मसिंह राणा, सतवीर, सचेत कुमार, श्रीराम खटोड़, सचिन दलाल, शमशेर, विनोद, नरेंद्र लोहचब, अनिल सिंघल, रंजीत, बिजेन्द्र पूनियां, महावीर सहरावत, प्रवीण, संदीप, मोनू, प्रवेश, मोहित,कुंवर सिंह, बबिता दहिया, कामिनी आदि कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
