बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
कलमवीर विचार मंच द्वारा हरियाणा के युवा कहानीकार विजय विभोर के सम्मान में काव्योत्सव का आयोजन किया गया। वरिष्ठ कवि नारायण दत्त त्रिशूल के सानिध्य में हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता ज्ञान प्रकाश विवेक ने की।कवि सतपाल स्नेही द्वारा आयोजित व कृष्ण सौमित्र की सरस्वती वंदना से शुरू हुए काव्योत्सव का संचालन गीतकार विद्यार्थी ने किया। इस अवसर पर विभोर के कहानी संग्रह ‘अहंकार के अंकुर’ पर भी चर्चा हुई।युवा रचनाकार बृज प्रजापति ने जहां संग्रह की कहानियों की समीक्षा करते हुए उन्हें आम आदमी के जीवन का दर्पण बताया वहीं ज्ञान प्रकाश विवेक ने उपस्थित रचनाकारों से आग्रह किया कि वे अपने लेखन में कस्बों और शहरों में पांव पसारती जा रही संवेदनहीन महानगरीय संस्कृति से अलग अपने महान भारतीय नैतिक मूल्यों पर आधारित ग्रामीण परिवेश की पुनर्स्थापना का संदेश देने का प्रयास करें। विजय विभोर ने अपनी कहानियों की पृष्ठभूमि पर विस्तृत चर्चा की।
कार्यक्रम में उपरोक्त साहित्यकारों सहित शिव ओम शिव, करुणेश वर्मा जिज्ञासु ,अजय भारद्वाज,अशोक साहिल, अरविन्द गौतम,मोहित कौशिक, अनिल भारतीय गुमनाम, राजकुमार गाईड, नरसिंह सैनी व सुनीता सिंह सहित सचिन और सार्थक शर्मा ने भी काव्य पाठ किया। काव्योत्सव के अंत में मुख्य अतिथि विजय विभोर, विशिष्ट अतिथि बृज प्रजापति व अध्यक्षता कर रहे ज्ञान प्रकाश विवेक को सम्मान स्वरूप शाल आदि भेंट कर किया गया।
××××××××××××××××××××××
काव्योत्सव में पढ़ी गईं रचनाओं के प्रमुख अंश….
यारो मैं एक मकान था, ऐसे गिरा कि बस,
पल भर में ईंट-ईंट बिखरता गया कि बस।
वो भूख का मारा हुआ जोकर था दोस्तो,
जो रोटियों के वास्ते इतना हंसा कि बस।
– ज्ञान प्रकाश विवेक
देखकर सब कुछ यहां पर देखता कोई नहीं।
इस शहर की ख़ासियत है बोलता कोई नहीं।।
सब चले जाते हैं गुमसुम अंधी खाई की तरफ,
रास्ता एक दूसरे से पूछता कोई नहीं।
– कृष्ण गोपाल विद्यार्थी
ये ज़मीनों-आसमां कम तो नहीं,
आदमी होना यहां कम तो नहीं।
ढूंढता फिरता है तू जिस प्यार को,
तेरे मेरे दरमियां कम तो नहीं।
– सतपाल स्नेही
प्यार में दर्द का फलसफा ही मिला,
हमको जो भी मिला बेवफा ही मिला।
रात ही रात में कट गई ज़िन्दगी,
जब सवेरा मिला तो खफा ही मिला।
– कृष्ण सौमित्र
हैं सभी में राम-रावण, खोजता कोई नहीं।
हैं सभी में जमीरे तराजू, तौलता कोई नहीं।।
– अजय भारद्वाज
बड़ी भोली हैं ये रंग-बिरंगी तितलियां,
बिल्लियों के शहर में
उम्मीदों के कबूतर
पाल बैठी हैं।
– नारायण दत्त त्रिशूल
जिसकी आंखें हमें हमेशा जवां रखती हैं,
ये हुनर दुनिया में केवल मां रखती हैं।
– अरविन्द गौतम ‘बेन्दी’
जो हो एक बार, वो हर बार हो,ऐसा नहीं होता,
हमारा हर सपना साकार हो, ऐसा नहीं होता।
– सुनीता सिंह
सुंदर जग में घूम रहा मन मुखड़े देखे प्यारे,
प्यास जगी खुद से मिलने की छू लूं चांद सितारे।
– अनिल भारतीय गुमनाम
क्यों बच्चियों को संवरने नही देते तुम लोग,
ज़रा अंधेरा क्या हो जाये घर से निकलने नही देते तुम लोग।
– मोहित कौशिक

