बहादुरगढ़ आज तक
नगर की साहित्यिक संस्था कलमवीर विचार मंच की मासिक गोष्ठी सेक्टर नौ के कवितायन परिवार में हुई। गोष्ठी में क्षेत्र के वरिष्ठ कवियों सहित नवोदित कवि मोहित कौशिक ने भी अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति से समां बांध दिया।कार्यक्रम का संचालन अनिल भारतीय गुमनाम ने किया।
काव्य गोष्ठी का शुभारंभ युवा कवि मोहित की रचनाओं से हुआ। उन्होंने कहा-
जब इंसाफ नही है तो ये वकालत क्यों है, ये अदालत क्यों है ?
जिसके नाम पर इंसान इंसान को काट रहा है,
ऐसा खुदा क्यों है, ऐसी
इबादत क्यों है ?
कवि कृष्ण सौमित्र ने एक के बाद एक कई गीत सुनाई। उनके इस गीत को सर्वाधिक सराहा गया—
माना मैं नाटक करता हूं विपदा में सुख से जीने का,
माना मैं नाटक करता हूं विष को अमृत कर पीने का।
कुंठाओं से पीड़ित मन को इतना भी न करने दोगे ?
मैं हूं जन्मजात अभिशापित, इससे अधिक शाप क्या दोगे ?
ग़ज़लकार सतपाल स्नेही ने जीवन की तमाम विसंगतियों को ग़ज़लों के माध्यम से व्यक्त किया।उनके इन शेरों को भरपूर दाद मिली-
आपकी मर्ज़ी से ठहरूँ,बह चलूँ,ऐसा नहीं,
आँख का पानी सही पर बेवजह बहता नहीं।
जब भी जी चाहे बुझा दो फेंक दो फिर रौंद दो,
मैं तुम्हारी अधजली सिगरेट का टुकड़ा नहीं।
अनिल भारतीय गुमनाम ने श्रंगार रस की रचनाएं सुनाईं।एक बानगी प्रस्तुत है-
अब तेरे बिन,कटते ना दिन,
सुन लो सनम हम मरने लगे।
लगता है हम प्यार करने लगे..
कार्यक्रम के संयोजक कृष्ण गोपाल विद्यार्थी ने भी कुछ मुक्तक सुनाए। काव्य मंचों पर बढ़ती व्यावसायिकता पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा –
रोम रोम में रमा रमी पर राम की बातें करते हैं,
कारोबारी लोग तो केवल काम की बातें करते हैं।
द्विअर्थी संवादों को भी कुछ साहित्य बताते हैं,
सुरा-सुंदरी के दम पर संग्राम की बातें करते हैं।
उनके काव्य पाठ के साथ ही गोष्ठी का समापन हुआ।