बहादुरगढ़ आज तक, विनोद कुमार
पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर इलाके में बेरहमी से गली के एक कुत्ते को पीट-पीट कर मौत के घाट उतारने के मामले में पुलिस ने आरोपियों की पहचान सतपाल चौधरी व उसके पुत्र तरूण उर्फ सोनू के रूप में करते हुए दोनों को गिरफ्तार कर लिया है।
क्या था पूरा मामला: पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर के शांति मोहल्ला में 22 अप्रैल को देर रात आरोपी सतपाल चौधरी ने कुत्ते के मुंह में सरिया डालकर उसे जमीन पर लिटा दिया और उसके बाद उसके बेटे तरूण उर्फ सोनू ने लकड़ी से लगातार उसके सिर पर वार किए। जिससे उसकी मौत हो गई। इस कुत्ते को मारते समय किसी ने उसका वीडियो बना लिया था। इस वीडियो के वायरल होते ही जीवप्र्र्रेमियों व स्वयंसेवी संगठनों का गुस्सा फूंट पड़ा। उस समय तो पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी, लेकिन जीव प्रेमियों व सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों के प्रदर्शन के बाद पुलिस ने आरोपितों के नाम दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
जीवप्रेमियों के दबाव में हुई गिरफ्तारी: इस घटना के बाद जब जीवप्रेमियों ने थाने में शिकायत व वायरल वीडियों दी तो पहले तो पुलिस ने वीडियों में आरोपियों के खिलाफ सबूत होने के बावजूद भी नामजद रिपोर्ट दर्ज करने के बजाय अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था। लेकिन जब विभिन्न क्षेत्रों से जीवप्रेमी व सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने विरोध किया व कैंडल मार्च निकाला तो पुलिस पर दबाव बना और पुलिस ने आरोपित पिता-पुत्र के खिलाफ मामला दर्ज करके उनको गिरफ्तार किया।
घटना के समय दूसरे कुत्ते आए मदद को पर घटनास्थल से गुजर रहे किसी इंसान की इंसानियत नहीं जागी: इस घटना की वायरल वीडियों को देखने पर पता चलता है कि हम इंसानों से ये बेजुबान प्राणी कई मामलों में अच्छे हैं। जब आरोपी पिता-पुत्र उस लाचार कुत्ते पर अपनी मर्दानगी दिखा रहे थे, ठीक उसी समय कई लोग उस स्थान से गुजरे। घटना के समय वहां से गुजरने वाले राहगीर उस दर्दनाक घटना को देखकर भी अनदेखा करते हुए गुजरते गए, किसी राहगीर ने उन बेरहम पिता-पुत्र द्वारा सरेआम किए जा रहे जीव हत्या का विरोध करना तो दूर, एक मिनट के लिए वहां रूकना भी ठीक नहीं समझा। जबकि निर्दयी पिता-पुत्र द्वारा बेहरमी से सरेआम की जा रही जीव हत्या के विरोध में उस गली के बाकी कुत्ते अपने साथी को बचाने का प्रयास करते नजर आये। परन्तु इन बेरहम पिता-पुत्र के सामने उन साथी कुत्तों की एक नहीं चली। अगर कोई राहगीर या स्थानीय निवासी हिम्मत करके इस अत्याचार का विरोध करता तो शायद वह बेजुबान भी बच जाता।
